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समय – चक्र / इंदिरा शर्मा

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मैं महाकाल हूँ
मैं महाकाल हूँ
बीत रहा कतरा – कतरा
यह वर्तमान हिमसेतु सा है जोड़ रहा
आदि भूत को महा भविष्यत् से
ये वर्तमान कुछ जल चंचल |
भूतकाल कुछ हिम जैसा स्थिर कठोर
जिसमें जीवन के शिला लेख
जाने कितने हो गए दफ़न |
मैं वर्तमान हूँ खड़ा भूत के शैल शिखर
बहता घाटी में बन चंचल जल
गतिशील –
समोता मुझमें जीवन का उर्वर हर क्षण –
कर्मठ जीवन
ये भी तो नहीं रहा ठहर |
द्रुत गति बढ़ता उस ओर जहाँ अदृश्य पटल
यह आगत –विषम – सम निर्मम
या –
फिर कोमल कान्त पुष्प वल्लरी सा
सुन्दर सुखमय क्षण
निरंतर बहता
सरिता सा बहता जल आगम |
यह महाकाल इसके न काल खंड
बहता नित्य चिरंतन
यह भूतकाल , वर्तमान , भविष्यत् चक्र
गति से घूम रहे हैं , नित्य , प्रतिक्षण ,
प्रतिपल |