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समय / शलभ श्रीराम सिंह

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अपने समन्दरों को पाटने का समय है
अपने पहाड़ों को ढोने का
अपने अन्धेरों को पी जाने का समय है यह।

बीमार ख़याल लोगों को —
दुनिया से बाहर निकाल देने का समय है,
समय है स्वस्थ ज़िन्दगी के सपनों में रंग भरने का,
अलग-अलग धन्धों में लगे लोगों के
एक साथ उठने का समय है यह ।

आसमान की बदलती रंगत के ख़तरों से —
सावधान होने का समय है,
समय है एक साथ सोचने और बोलने का,
पृथ्वी को एकजुट होकर बचाने का समय है यह ।

सांसों पर जवान उम्मीदों के लश्कर उतारने का समय है,
समय है थकान और पस्तहिम्मती के ख़िलाफ़
लामबन्द होने का
मौत के ख़िलाफ़ ख़ुद-ब-ख़ुद
पैदा होने का समय है यह ।