समर्पण के तीन बिम्ब / अनामिका अनु
1
तिरुवल्ला के पलीयक्करा चर्च-सा
प्राचीन महसूस करती हूँ,
जब तुम बुझी आँखों से देखते हो
मेरे अतुलनीय वास्तु को,
मेरा सारा आन्तरिक बोध तुम्हारी मुस्कान
और आँखों की श्रद्धा को समर्पित हो जाता है ।
और मैं नवजात शिशु में परिवर्तित हो जाती हूँ – सर्वथा नूतन !
2
चमक उठी थी कल स्वर्ण-मन्दिर-सी
जब आँगन बुहारते-बुहारते तुम्हारी छाया
मुझ पर आ गिरी थी,
मैं उसे झटककर पलटी भर थी कि
तुम्हारी मिट्टी के दीये -सी सौंधी आँखों में
गीली मीठी-सी लौ को दमकते देखा था,
मैंने धूप को हौले-हौले सरकते देखा था,
मैंने चाँद को आँखों में आहिस्ता-आहिस्ता उतरते देखा था ।
3
पालयम के मस्जिद की नज़र सुनहरे येशू पर थी,
हमारी सड़क के दोनों किनारों पर थी,
आए गए लोगों के मेलों में
ऊँघते चर्च, मस्जिद और शिवालय,
घण्टी, अज़ान, और ग्रंथ पाठ से हम उनको जगा रहे हैं,
वे हमारे भीतर के बन्द इबादतख़ाने
पर खड़े कब से घण्टी बजा रहे हैं ।