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समर्पण लिखूँगी / कविता भट्ट

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आजीवन पिया को समर्थन लिखूँगी
प्रेम को अपना समर्पण लिखूँगी ।

निज आलिंगन से जिसने जीवन सँवारा
प्रेम से तृप्त करके अतृप्त मन को दुलारा ।

उसे आशाओं स्वप्नों का दर्पण लिखूँगी
प्रेम को अपना समर्पण लिखूँगी ।

प्रणय -निवेदन उसका था वो हमारा
न मुखर वासना थी; बस प्रेम प्यारा ।

उससे जीवन उजियार हर क्षण लिखूँगी
प्रेम को अपना समर्पण लिखूँगी ।

न दिशा थी, न दशा थी जब संघर्ष हारा
विकट-संकट से उसने हमको उस पल उबारा ।

उसमें अपनी श्रद्धा का कण-कण लिखूँगी
प्रेम को अपना समर्पण लिखूँगी ।

कौन कहता है जग में प्रेम जल है खारा
मैंने तो मोती-सीप सागर से ही पाया ।

इस जल पे जीवन ये अर्पण लिखूँगी
प्रेम को अपना समर्पण लिखूँगी।
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