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समर्पण / चेस्लाव मिलोश / श्रीविलास सिंह

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तुम, जिसे मैं बचा न सका
सुनो मेरी बात
समझने की कोशिश करो इस सरल व्याख्यान को क्योंकि मुझे आएगी लज्जा दोबारा इसे कहते,
कसम से, नहीं है मुझ में शब्दों की जादूगरी
मैं बोलूंगा तुमसे एक बादल या वृक्ष की खामोशी की तरह।

मैं मज़बूत हुआ क्योंकि तुम थे संहारक।
तुमने एक युग की विदा को मिला दिया एक नये युग के आरम्भ से,
घृणा की संगीतमय सुंदरता युक्त प्रेरणा,
अंधशक्ति परिपूर्ण आकार में।

यहाँ है पोलिश नदी की छिछली घाटी और एक विशाल पुल
गुजरता सफेद कोहरे से, यहाँ है एक ध्वस्त शहर;
और हवा ले जाती है तुम्हारी कब्र तक समुद्री पक्षियों की चीख
तभी जब मैं तुमसे बात कर रहा हूँ।

कविता क्या है जो नहीं बचाती
राष्ट्रों को या जनता को?
शासकीय झूठों से एक सहमति,
उन पियक्क्ड़ों का एक गीत जिनके गले कट जायेगें कुछ ही क्षणों में,
दूसरे वर्ष की छात्राओं के लिए पाठ,
कि मैं चाहता था अच्छी कविता बिना यह जाने,
कि मुझे ज्ञात हुआ, बाद में, इसका शुभकर उद्देश्य
इस में और केवल इसी में मुझे मिलती है मुक्ति।

वे गिराते हैं बाजरे या अफीम के बीज क़ब्रों पर
मृतात्मो के खाने को, जो आती है पक्षियों का भेष धारण कर,
मैं यह पुस्तक यहाँ रखता हूँ तुम्हारे किए, जो कभी थे जीवित
ताकि तुम फिर न आओ कभी हमारे पास।