समांतर आभासी दुनियाएं / योगेंद्र कृष्णा
बलात्कारी जब बाबा होते हैं
वे तुमसे सीधे बलात्कार नहीं करते
वे तुम्हारी हत्या भी नहीं करते
वे छलते हैं तुम्हें अपनी साधना से
और साधते हैं तुम्हें अपनी छलना से
वे ले जाते हैं तुम्हें
तुम्हारी आंखों पर
सम्मोहन की रेशमी पट्टियां बांध
खुद तुमसे बहुत दूर
जंगल, पहाड़ और घाटियों में
जहां छुपा रखी हैं उन्होंने
एषणाओं और दुनियावी आकांक्षाओं
से ऊभ-चूभ अपनी निजी समांतर दुनियाएं
जहां रात्रि के गहन अंधकार में
अपनी खोल से बाहर निकल
वे तुम्हारे ही बनाए इस ऐश्वर्य में
डूबते-उतराते हैं
तुम्हारी मूर्खता और अपने पाखण्ड
पर हंसते-इतराते हैं
और यहीं पर
वे झपट लेते हैं तुमसे
तुम्हारा विवेक
तुम्हारी दृष्टि
तुम्हारा विज्ञान
पाखण्ड और छद्म से लड़ने के लिए
इतनी जतन से अर्जित
तुम्हारे सारे हथियार और
अधिकार का कर लेते हैं अपहरण
बनते-बिगड़ते तुम्हारे सपनों की
एक-एक ईंट पर
चढा लेते हैं अपना रंग
वे छीन लेते हैं तुमसे
तुमहारी फ़ितरत
तुम्हारी प्रकृति, तुम्हारा पर्यावरण
जिसमें तुम रहते हो
और मुआवजे में सौंप देते हैं तुम्हें
तुम्हारे लिए ही बनाई गई
छद्म, पाखण्ड और कशिश से सरशार
आभासी एक मुकम्मल दुनिया
जिसमें रहने की उत्कट चाहत में
तुम्हें हर पल मरना होता है
जहां उड़ान भरने की कोशिश में
पर कटी किसी चिड़िया की मानिंद
तुम्हें उसी ऐश्वर्य की आगोश में
हर बार गिरना होता है
वे सीधे स्वर्ग से
सीख कर आए होते हैं
चुंबन और संभोग का अध्यात्म
और काम की अद्भुत कलाएं
तुम्हारे ही समर्पित हथियारों से
वे करते रहेंगे तुम पर निरंतर जादुई प्रहार
क्योंकि तुम ही उन्हें
किसी भी जेल की ऊंची दीवारों से
छुड़ा लाओगे हर बार…
मुर्खताओं और चालाकी से भरी
इस दुनिया में
फलते-फूलते रहेंगे
उनके कारोबार
जबतक एक तरफ तुम उनसे
और दूसरी तरफ वे तुमसे
उपकृत-चमत्कृत होते रहेंगे
जबतक वे तुम्हारी
और तुम उनकी
बुनते रहोगे समांतर दुनियाएं…