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समाधिस्थ / धूमकेतु

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अश्वत्थ नामक गाम हमर, कापालिक थिक।
एकर गन्हाइत जटा-जालमे गराड़ सभ सहसह करैत छैक
हृदय नामक अंग एकर उधकैत छैक मंत्र-बलें
ओना बान्हि देने छैक दशो दिशा उनचासो पवन
आजे एक घोकचल-गिजटाह ठहुरी-फुनगी
कँपैत रहैत छैक अहर्निश कोनो अज्ञात उत्तापसँ
पातक आतंकसँ पात सिहरैत रहैत छैक
हमरा गाम प्रत्येक शाखामे छैक गहींर अन्हार धोधड़ि
आ सभ धोधड़िमे बसैत अछि एकटा क’ सनातन शेषनाग
अन्हारमे विष-दृष्टि ओकर लेसर किरण जकाँ चमकैत छैक
ओ बीछि बीछि क’ खा जाइत छैक निरीह चिड़इ-चुनमुनीक अण्डा
आ हमरा गाम निस्तब्ध वातावरणमे औनाइत रहैत छैक
मात्र मरूछियाहि परूकीक मूक हाक्रोश
एकर अंकमे उमकैत छैक डाकिनी-पिशाचिनी-योगिनी
जे प्रत्येक संभावित भ्रुणकें मन्त्र बलें
छिना दैत छैक
आ चानि पर लेस दैत छैक बतिहर
साबर गबैत छैक आ नचैत छैक
भैरवी चक्रमे चक्राकार नंगटे।
हमरा गाममे रहैत छैक बारहोमास कालरात्रि।
शीर्षस्थ छनि काकभुसुण्डीक खोंता
जखनि-जखनि प’ह फाट’ लगैत छैक
ई सपुत्रे डारि-पाँखि पसारि लैत छथि।
दूरागतक आभासेसँ साकांक्ष,
सोनिताएल सिसोहल घेंट हिनक
काल सर्प जकाँ तनतनाए लगैत छैक।
हमरा गामक मुरदा जड़ि
कोइला-मोइनिक सड़ल कादोमे डूबल छैक
गाम हमर ओहिमे चकभाउर दैत लेढ़ा रहल अछि
आ गामक मूर्च्छित आत्मा अपन चोंचामे बैसल
पथराएल दृष्टिएँ भट्ठा दिश त्राटक लगौने
विपरीत गतिक सम्मोहनमे अपनाकें समाधिस्थ बुझैत अछि।