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समान्तर ही सही / नंदकिशोर आचार्य
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कभी जो नहीं मिल पातीं
समान्तर पटरियाँ ही सही
यात्रा हो जाना
साथ मंज़िल तक पहुँचना है
कभी जो नहीं मिल पाते
दो किनारे ही सही
बीच जल के साथ
बहना
नदी होना है
प्रेम क्या है
यों साथ-साथ
चल कर
बह कर
यात्रा हो जाने
नदी होने के सिवा—
समान्तर ही सही ।
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5 नवम्बर 2009