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समाप्त / कंस्तांतिन कवाफ़ी
Kavita Kosh से
भय और संदेहों में घिरे,
मुहाल मन और भयभीत आँखों से,
हम पिघले, ज्यों हमने ख़ाका खींचा कि कैसे बर्ताव करें
ताकि ख़तरे को टाल सकें जो
हमें धमका रहा है भयावह तरह से
हम भूल तब भी करते हैं,
कि यह नहीं है हमारे रास्ते पर,
संदेश थे, धोखा
(या हमने उन पर कान नहीं दिया
या उन्हें ठीक तरह से भाँप नहीं पाए)
एक और विनाश,
जिसकी कल्पना तक नहीं की थी,
अचानक, हम पर गिरता है सरपट,
और बेतैयार जैसे हम हैं
- अब नहीं बचा समय -
हमें चिथड़े चिथड़े कर देता ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : पीयूष दईया