समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं / वसी शाह
समुंदर में उतरता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
तिरी आँखों को पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
तुम्हारा नाम लिखने की इजाज़त छिन गई जब से
कोई भी लफ़्ज़ लिखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
तिरी यादों की ख़ुशबू खिड़कियों में रक़्स करती है
तिरे ग़म में सुलगता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
न जाने हो गया हूँ इस क़दर हस्सास मैं कब से
किसी से बात करता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
मैं सारा दिन बहुत मसरूफ़ रहता हूँ मगर जूँही
क़दम चौखट पे रखता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
हर इक मुफ़लिस के माथे पर अलम की दास्तानें हैं
कोई चेहरा भी पढ़ता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
बड़े लोगों के ऊँचे बद-नुमा और सर्द महलों को
ग़रीब आँखों से तकता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
तिरे कूचे से अब मेरा तअल्लुक़ वाजिबी सा है
मगर जब भी गुज़रता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं
हज़ारों मौसमों की हुक्मरानी है मिरे दिल पर
‘वसी’ मैं जब भी हँसता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं