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समुद्र और चंद्रमा / दिनेश कुमार शुक्ल
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भीतर-भीतर गूँज रही है जल-जीवन की गूँज
समुद्र शान्त दिखता है
बिसूरता है भूला सा इक गीत
जिसे वह तब गाता था
जब आता था ज्वार
और जब उदय हुआ करता था
अद्भुत परीकथा का पानी-पानी चाँद अमावस भरे गगन में
आस-पास दुनिया जहान में
बिना चाँद के भी चाँदनी रहा करती थी