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समेटना / अनिता भारती
Kavita Kosh से
दर्द
पतीले मे जमें
उस दूध की तरह
जो मुश्किल से हटे
रगड़ना पड़ता है उसे
बार-बार
सूखे पतीले में जमी
मलाई की तरह
ऊँगली में समेटों
और
गुप से चाट जाओ