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सम्मतक खोज / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

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हम तँ बताहे छी, बतहू सब कहितो अछि,
किन्तु कतहु सम्मत क्यो नजरिमे न आयल अछि।
हमरा जनैत, आब सृष्टिक नियन्तेकेँ
काँके पठयबाक अवसर तुलायल अछि।
एहन कथा बजलापर अपनहुँकेँ भय सकैछ
भ्रम हो जे सत्ते ई उन्माद-ग्रस्त अछि,
किन्तु बिना तर्केँ जँ धारणा बनाय ली तँ
कहय पड़त अपनहुँकेर माथ अस्तव्यस्त अछि।
एक नहि, अनेक उदाहरण अपन मतक पुष्टि
हेतु सभक सोझाँमे प्रस्तुत करैत छी,
देखै’ छी तखन कोना पानि परक तेलजकाँ
छेहै छी अथवा दम सधने ससरैत छी।
कहबालय शान्तिकेर ठिकेदार बनल कते
संसारक शक्तिमान देशक जननेता सभ
आपाद मस्तक छथि डूबल स्वार्थान्ध भेल,
ठाम-ठाम युद्धकेर बनला प्रणेता सभ।
सनकल वैज्ञानिक सभ धरतीकेँ ध्वस्तकरक-
हेतु सदा संहारक अस्त्रे गढ़ैत छथि,
सनकल संसार खाधि खूनि बीच बाटेपर
अपने, आ दोष तकर आनपर मढ़ैत अछि।
करता व्यापार ताहि सांघातिक अस्त्र सभक,
ताहीलय बाजारो तकने फिरैत छथि,
युद्धक उन्माद-रोग-ग्रस्त कते जन-नायक
डाइनि जकाँ अपन आँत अपने तिरैत छथि।
खयबालय गोली आ पीबालय आत्म-ग्लानि
दीन तथा दुखियाकेँ मङनी बँटैत छथि,
भीतरसँ स्याह, मुदा ऊपरसँ व्हाइट हाउस
केर शान्तिमन्त्र राष्ट्रसंघमे छँटैत छथि।
की ई सभ काज कोनो सम्मत मस्तिष्क थिक
अथवा की शक्तिक उन्माद ग्रस्तकयने छनि,
कालकेर गालमे समौता की विश्वेकेँ
लक्षण ई स्पष्ट टाङ पाछूसँ धयने छनि?
स्वाधीनताक भूत चढ़लनि मुजीबोपर
मानि लेल, याहियाकेँ सत्ता अँटकौने छनि
साधन-विहीन देश बाङला निवासी सभ
केहन केहन योद्धाकेँ पथरी सटकौने छनि
जा’ धरि बताहलोक होइछ नहि ता’ धरि की
क्रर भेल याहिमा समान मन लगैत छै’,
जा’ धरि बताह लोक होइछ नहि ता’ धरि की
माओत्से तुंगजकाँ अहं ई जगैत छै’।
जन-नेता लोकनिक ई हाल उदाहरण भेल,
प्रकृतिकेर बतहपनी आँखिक समक्षे अछि,
जकरे भरोस राखि सृष्टिक ई चक्र चलल
सैह वायु आइ लोकहितमे विपक्षे अछि।
देखूने पछबाकेँ बिसरि गेलै’ पूव दिशा
पुरिबा से पच्छिम दिस दौड़ेमे लागल अछि,
धधकल छै’ पूव दिशा ताहि ताप मध्य पड़ल
पच्छिममे बहुतो बुधियार आइ दागल अछि।
चैतेमे धयलक से आसिन ठेकौलक आ
कहिया धरि बरिसत से क्यो ने जनैत अछि,
सनकल ई मेघ पानि झहराबय सदिखन तेँ
गंगा ओ यमुनामे छूरी फनकैत अछि।
पुरिबो बताह आ बताहे ई मेघ ताहि
सँगहि बताह प्रकृतिकेर अंग-अंग अछि,
एते बताहाक चालि सभटा कुचालि देखि,
हम तँ छी दंग, मुदा दुनिवा ई तंग अछि।