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सम: विषम / पयस्विनी / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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(तुलनात्मक बरहमासा)

मधु निकुंजमे जाउ अहाँ, फागुनक फाग धुनि गाउ
रंगिनि संगिनि संग अंग रुचि रंग अबीर लगाउ
हमरा चैत चेताबय चित चढ़ि, चर-चाँचर चलि जाउ
खेतक मोती दाना चुनि-चुनि घर-खरिहान सजाउ
अहँक विशाखा सखी सिखाबय राधा बाधा दाह!
हरि सकबे हरि! विरमि-विलभि वन विजन सघन तरु छाँह
हमर जेठ तपि हठि वर्षा हित कहय, तपसि तपि आउ
श्रम-बिन्दुक संचय करइत, घन गगन स्वयं उमड़ाउ
अहँक अषाढ़ प्रथम दिवसहिमे असह विरह-अभिभूत
अभिशापित अचेत गिरि-शिखरहि पठबय मेघक दूत।।
घन श्यामक आगमन आङनहि, वन-वन विकच कदम्ब
साओन हमर सोहागिन सजबय केश-वेश धन लम्ब
नित्य सहज संयोग, धरणि - अम्बर अछि एकाकार
हरित-भरित बसुधा दृग अंचल प्रकृतिक सुचिर सिङार
‘ई भर बादर भादर’ अहँक गबैछ ‘दुखक नहि ओर’
हमर सहज आसिन आशा लय पोछय आँखिक नोर
कातिक बातिक कन्त जराबय घर भरि अहँक इजोत
किन्तु तेरहम वितइछ घर-घर ककरहु ई न इरीत।।
अगहन गहन हमर अन-धन जे भरय खेत-खरिहान
निर्भर हर्षक वर्ष जाहि पर भरि सब तरि धन-धान
पूस हूस अछि तूस - तुराइ बिना हिम-राति कटैत
जाड़ - ठाड़ गड़इछ जन-परिजन अहँक पुसौठ अछैत
सीर पंचमी माध जोत जत हमर किसानी ठाठ
हर-फारक चालन, संचालन वेद विप्र धन-पाठ
माघक श्री पंचमी हमर दिग् देश वसन्त सजैत
अहँक पुरै अछि रंग-रभस पुनि फागुक राग रचैत
फाग राग रुचि अहँक हमर शुचि चैताबरिक प्रसंग
कोना तखन समगम सरिगम धुनि विषम दुहुक रुचि-रंग