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सरकारी नौकरी वाले / संगीता शर्मा अधिकारी

Kavita Kosh से
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टैक्स के एक-एक पैसे का
भुगतान करने वाले
चाहकर भी कुछ ना
छिपा सकने वाले
किसी भी प्राकृतिक आपदा महामारी में
अपने खून पसीने की कमाई
राष्ट्र को समर्पित करने वाले
कोरोना महामारी में भी वॉरियर्स
आम आदमी की श्रेणी से
मीलों दूर रखे जाने वाले
ये हैं सरकारी नौकरी वाले ।

कड़ी मेहनत के बाद इन्होंने
सरकारी नौकरी पाई
नौकरी में आकर जाना
यहां एक ओर है कुआं
दूसरी ओर है खाई।

यहां कदम-कदम पर जिल्लत
और घड़ी-घड़ी पर ताने हैं
यहां इन्हें अपने बेशकीमती जीवन के
अभी कई और साल गवाने हैं।

जहां अपनी गलती न होने पर भी
क्षमा याचना हेतु हाथ फैलाने हैं
फिर भी बात - बात पर
ज्ञापन और पनिशमेंट पाने हैं।

यहां एक तरफ अफसर
दूसरी तरफ अधीनस्थ की सुननी है,
यानी एक नहीं दोनों राहें चुननी हैं।

दो नावों पर सवार हैं
फिर भी सफ़र पूरा करने वाले हैं।
जी हां
क्योंकि ये सरकारी नौकरी वाले हैं।

बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए
नौकरी जरूरी करनी है
गांव-देहात छोड़कर
शहर की ओर कूच करनी है
मन भले न करे दफ्तर जाने का
फ़िर भी अफसर की सुननी है
अपने परिवार की खातिर
नित नई राहें चुननी हैं।

आसान नहीं है सबको
एक साथ खुश रख पाना
परिवार के साथ वक्त बिताना
और ऑफिस में जॉब को बचाना।

परिवार के साथ बमुश्किल ही
ये कुछ वक्त बीता पाते हैं
परिवार तो जैसे सराय है
वहां तो ये बस केवल आते जाते हैं।

फिर भी हर मोड़ पर
चाहे जैसी हो डगर
ये अपनी जिम्मेदारी निभाने वाले हैं
जी हां
क्योंकि ये एक सरकारी नौकरी वाले हैं।

प्रमोशन, इंक्रीमेंट की बात पर
इन्हें बरसों लटकाया जाता है
हक की बात कहने पर
ठेंगा दिखलाया जाता है।

अफसर यदि गधा है तो
तुम भी वैसे बन जाओ
घोड़े की रफ्तार से दौड़ते हो
तो फ़िर हर पल चाबुक खाओ।

नौकरी यदि चलानी है तो
हर वक्त यही मूल मंत्र जपो
बॉस इज ऑलवेज राइट
का ही, हर पल ध्यान धरो।

बॉस की गर नहीं मानोगे
कई बीमारियां गले लगा लोगे
हां में हां मिलाओगे तो
मेवे मिठाई खाओगे।

लोग समझते हैं
कितना आनंद है सरकारी नौकरी में
पर उन्हें कोई कैसे समझाए
कितनी घुटन है इसमें।

हां ये सब सच है
हां ये सच है
पर ये सुनकर, न तुम
सरकारी नौकरी से मोहभंग करो,
गर मक्खन की टिक्की
रखते हो पास
तो सरकारी नौकरी कर बिंदास
सारे, चाक-चौबंद करो।

अफसर चाहे करें
भले लाख मनमानी
अधीनस्थ के लिए
कायदों की फेहरिस्त लगानी।

बॉस है आख़िर तुम्हें उसकी
सुननी ही होगी
स्वाभिमान को मार
चाटुकारिता करनी ही होगी।

ट्रांसफर पर जाने से
घर-आंगन भी टूट गया
बच्चों से पिता दूर
पति-पत्नी का प्यार भी रूठ गया।
यार दोस्त नाते रिश्तेदार
सब के सब कहीं छूट गए।

नहीं थी ये उम्मीद
कभी ऐसा पल भी आएगा
गधे होंगे मठाधीश
घोड़ा सलाम बजाएगा।

अफसर तो नहीं बदलेगा
तुम, खुद ही को बदलो
तुम सरकारी नौकरी वाले हो,
अमा यार, कुछ तो संभलों!!!

कितना संत्रास, कितना दुःख है
इस सरकारी नौकरी में
खुद की फटी बिवाई
तो जानी पीर पराई।

मजबूरी ने इतना सिखाया
आगे भी बहुत कुछ
सिखाने वाली है
जी हां
क्योंकि ये सरकारी नौकरी वाले हैं।

जानते हैं, ये अग्निपथ है
फिर भी ये चलने वाले हैं
चाहे जैसे भी हों हालात
ये कभी न थकने वाले हैं
क्यूंकि
जी हां
जी हां क्योंकि ये सरकारी नौकरी वाले हैं
क्योंकि ये सरकारी नौकरी वाले हैं।