भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सरस्वती का जन्म / सुबोध सरकार / मुन्नी गुप्ता / अनिल पुष्कर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नर्तकी सबकी कथा जानती है
लेकिन कहती नहीं ।

स्त्रीहरण की कथा
उसके इसी घर में बैठकर तय हुई थी ।

चित्रपरिचालक की मृत्यु
उसके इसी घर में बैठकर तय हुई थी ।

नर्तकी जानती है सबकी कथा
लेकिन कहती नहीं —
आज अमावस्या — पिता-पुत्र के बीच
नर्तकी चल रही है
माँ औ’ बेटी के बीच
नर्तकी चल रही है
भाई औ’ भाई के बीच
नर्तकी चल रही है
साँप-मयूर के बीच
नर्तकी चल रही है

नर्तकी जानती है सबकी कथा
वह जानती है शूद्रक कहाँ जाता था
उसके पास शूद्रक की पाण्डुलिपि है
हस्तिनापुर की मिट्टी अँगूठी के भीतर उसने छिपा रखी है

नर्तकी सबकी कथा जानती है
आज अमावस्या है
वह नाच रही है
पिता-पुत्र के बीच
गुरु-शिष्य के बीच
नाचते-नाचते इस घुप्प साँझ बेला में
वसुन्धरा को एक लात मार
वह भाग गई जँगल के भीतर

एक सौ साल बाद सुना गया
कुच युग शोभित नर्तकी
लौट आई हैं देवी सरस्वती रूप में ।

मूल बाँग्ला से अनुवाद : मुन्नी गुप्ता और अनिल पुष्कर