सरस्वती वन्दना / ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन'
बानी महारानी तोर महिमा अपार मैया,
गावे गुनगाथा कौन वीर जे महान हे।
गाते-गाते थकलन संभु औ विरंचि देव,
गाहु नहीं पयलन जानत जहान हे॥
तप त्याग जप भोग भाव और विचार में भी,
केकरो न रूप सूझे करे जे बखान हे।
तोर महिमा से मैया कविता के धार फूटे,
फूटे सब लोक में जे सुन्दर विहान हे॥
कविता करे ला मैया बुधिया विसाल देहु,
देहु मैया भावना जे सब से प्रधान हे।
कविता विवेक मैया हमरा में एको नाहीं,
करे लागी रस के जे सुन्दर विधान हे॥
नलिन के बुधिया हेराल मैया सगरो से,
देहु न विवेक जे कहावे सम्प्रदान हे।
भावना विभोर मैया वन्दना करे ला तोर,
माँगी मैया छन्दवा के सुन्दर जे ग्यान हे॥
गुन रीति वृत्ति और विभाव के सुजोग में भी,
सुग्धर कला के रूप देहु जे अजान हे।
उपमा विलास-लास धुनि अवरेव मैया,
जाति और सुभाव देहु लागे जे प्रमान हे॥
सुन्दर सुजोत मैया जगवा में भरि-भरि,
रूप के इँजोर देहु लागे जे विमान हे।
हिरदा के सिन्धु नव मतिया के सीप देहु,
कविता के मोतिया में लावे जे गुमान हे॥
बीनापानी जगरानी महरानी महिमा मे,
पावे नाहीं पार तोर गरिमा अपार हे।
उज्जर वसन सुभ चकमक लगे मैया,
बीना के निनाद तोर जग के अधार हे।
जहाँ-जहाँ ब्रह्म रहे सबद भी रहे तहाँ,
हंसवा तो करे रोज ग्यान के प्रचार हे।
तिमिर के घनकारा तोड़ के प्रकास मैया,
भर रोज जगवा में लावे जे विचार हे।