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सरापा रहने-इशक़ो / ग़ालिब
Kavita Kosh से
सरापा<ref>सिर से पांव तक</ref> रहने-इश्क़<ref>प्रेम पर अर्पित</ref>-ओ<ref>और</ref>-नागुज़ीरे-उल्फ़ते-हस्ती<ref>जीवन-प्रेम के सामने असहाय</ref>
इबादत बरक़<ref>बिजली</ref> की करता हूं और अफ़सोस हासिल<ref>फसल</ref> का
बक़दरे-ज़रफ़<ref>सामर्थ्य के अनुसार</ref> है साक़ी ख़ुमारे-तश्नाकामी<ref>प्यास का नशा</ref> भी
जो तू दरिया-ए-मै<ref>शराब की नदी</ref> है, तो मैं ख़मियाज़ा<ref>अंगड़ाई, अंत</ref> हूं साहिल का
शब्दार्थ
<references/>