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सरिता-तट की निशि-केलि-कथा पूछा था भाव-विभोर कभीं / प्रेम नारायण 'पंकिल'

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सरिता-तट की निशि-केलि-कथा पूछा था भाव-विभोर कभीं।
बस प्रेम-मुग्ध जल में हमने हॅंस दिया हथेली बोर तभीं।
पढ़-पढ़कर तेरा प्रेमपत्र प्रियतम अविरल आँसू ढुलके।
दर्पण तक दौड़ गयी पगली प्राणेश्वर! रोम-रोम पुलके।
प्रियतम् कपाट पर रख कपोल मैं सारी रजनी भर रोयी।
पथ तेरा निर्निमेष तकती थी जाने प्राण! कहाँ खोयी।
ली छीन परोसी थाल, विकल बावरिया बरसाने वाली ।
क्या प्राण निकलने पर आओगे जीवन-वन के वनमाली ॥134॥