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सर्कस / विपुल कुमार
Kavita Kosh से
एक दिन मैं पापा के साथ
गया देखने सर्कस,
कुछ मत पूछो सर्कस में,
मजा आ गया था बस।
रिंग मास्टर पहले आया
पिंजरा फिर लगवाया,
हाथों में चाबुक लेकर
शेरों का खेल दिखाया।
फिर आई एक लड़की
हिप्पो जी के संग,
हाथी को फुटबाल खेलते
देख हुआ मैं दंग।
भालू जी तो खूब मजे से
चला रहे थे रेल,
तोते जी ने भी दिखलाए
तरह-तरह के खेल।
जोकर ने आते ही कुछ
ऐसा रंग जमाया
अपनी अजब अदा से
सबको खूब हँसाया।
ऊपर लटके झूलों पर कुछ
कलाबाज़ फिर आए,
साँस थम गई सबकी-
कुछ ऐसे करतब दिखलाए!
खत्म हुआ शो सर्कस का-
उठकर घर था जाना,
पर सर्कस कहता थ मानो
दोबारा फिर आना।
साभार: नंदन, अक्तूबर 1996, 30