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सर्ग - 17 / महर्षि मेँहीँ / हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’

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उन्नीस सौ चौतीस ईस्वी, आत्म-ज्ञान कर प्राप्त।
ध्यान-साधना-योग गुफा के, बाबा करै समाप्त॥१॥

पावन गंगा तट पीआर छोटों, कुतया के निर्माण।
करना चाहै मेँहीं बाबा, जे जग्घों सुनसान ॥२॥

बालू पर खुट्टा गाड़ी कें, छौनी मेँ दै कास।
कुश-दभार के टटिया-फरकी, वै मेँ संत निवास॥३॥

साधु-संत-सन्यासी सबके, जोहें लगलै बात।
सुंदर दुतिया बगल फूफा के, गंगा केरों घाट॥४॥

दर्शन लेली कुछ नैंबूझै, दिन-दुपहरिया-भोर।
जखनी देखै लोग चलै छै, कुपाघटै ओर ॥५॥

बड़का एगो हाल बनाबै, कमरा घी कुछ खास।
दूर-दराजों के सतसंगी, वै मेँ करै निवास ॥६॥

चोटों कुतिया के जग्घों पर, बनलई भव विशाल
सतसंतगोन मेँ बाजे लगलाई, ढ़ोल, झाल करताल॥७॥

नाम रखावे महर्षि मेँहीं आश्रम’ कुप्पा घाट।
ताप मेँ टपलों बाबा केरों, लगै रूप विराट॥८॥

बाबा के उपदेश छपी कें, पावै पुस्तक रूप।
उपदेश ग्रंथ कें सतसंगी, सदा दिखवै धूप॥९॥

वहीं पुस्तकालय बनवावै, जे कि ज्ञान भंडार।
‘सदगुरु देवी बाबा साहब’ रखलक नाम विचार॥१०॥

छियासठों मेँ वै ठाँ खुललै, एगो प्रिंटिंग्स प्रेस।
छपलों गेलै वै प्रेसों मेँ, बाबा के उपदेश॥११॥

रंग-विरंगा फूल लगावै, आश्रम के नजदीद।
जड़ी-बूटी के पौधा सें भी, जगह लगै रमणीक॥१२॥

मौलसिरी, तुलसी, शिवलिंगी, लगलों छेलै ढेर।
आश्रम मेँ गोशाला बनलै, नैंलगलै कुछ देर॥१३॥

एक औषधालय के होलै, जब वै जाँ निर्माण।
दीन-दुखी, निस्सहाय केरों, होलै तब कल्याण॥१४॥

प्रेमी भक्तों के आग्रह पर, गाँव-शहर मेँ जाय।
अनमोल ज्ञान कें बाँटै जे, आत्म-ज्ञान लै पाय॥१५॥

जखनी श्री ‘रूँगटा’ जी बनलै, महासभा अध्यक्ष।
सत्संगों मेँ झलकै लगलै, पूरा उज्जवल पाक्स॥१६॥

केंद्र हमेशा कुप्पाघाते, बाँटै सगरे ज्ञान।
योग-साधना लेले एगो, पुन: हाल निर्माण॥१७॥

पाँच-पाँच सौ साधक बैठी, करै हौल मेँ ध्यान।
ठाम्हैं वहाँ भोजनालय के, भी होलै निर्माण॥१८॥

जोंन गुफा मेँ मास अठारह, बाबा करलक ध्यान।
अगू मेँ सुंदर दरवाजा, के होलै निर्माण ॥१९॥

गुफा लगै छै बहुत पुरानो, एतिहासिक प्रणाम।
मय दानव के द्वारा होलोन, छेलै ई निर्माण ॥२०॥

दानव जखनी हारी गेलै, देवासुर संग्राम।
यही गुफा मेँ बैठी-बैठी, करै रहै विश्राम ॥२१॥

कोय कहै छै लाक्षाग्रह के, छेलै यैठे स्थान।
पाण्डव के जाँ बचावै लें, हॉलों छै निर्माण॥२२॥

हवेन सांग के दिनचर्या मेँ, गौतम बुद्ध बखान।
‘एक जन्म मैं बैल बना था, यह गुफावास स्थान॥२३॥

भागलपुर के गजेटियर मेँ, अंकित छै ई बात।
की सच्चा, की झूठ बताबौ, हमरों नैंऔकात॥२४॥

इकहत्तर मेँ शाहीबाबा, सेवा कर स्वीकार।
गंगा तट पर घाट बनाबै, सुंदर सीढ़ीदार ॥२५॥

‘महर्षि मेँहीं स्नान घाट’ सें, जानैंछै सबलोग।
पचीस बीघा जमीन सुंदर, जे खेती के योग॥२६॥

कृपा सदा गंगा मैया के, बाबा के अकबाल
कुप्पघात माओनरम लागै, तट पर भवन विशाल॥२७॥
 
पूर्व मंत्री गिरीश तिवारी, कुप्पाघाटै आय।
कुप्पाघाटों केरों महिमा, सबके कहै सुनाय॥२८॥

‘जिनका ऊपर परम पिता के, दया-दृष्टि हो जाय।
अहीनों जग्घों पर आबै के, अवसर वोहीं पाय’॥२९॥

जापानी सतसंगी महिला, ऐलै हिन्दुस्तान।
आध्यात्मिक गंभीर जगह पर, छेलै उंकोन ध्यान॥३०॥

‘यूकिको फ्यूजिता’ नाम रहै, वाणी मेँ भी ओज।
कुप्पाघात पहुंची गेलै, करने-करने खोज॥३१॥

बाबा पर जब नजर पड़े छै, आबे लगलै ख्याल।
बाबा के दर्शन सपना में, पहिनें कुछछू साल॥३२॥

भारत पहुँची ऊ महिला के, मिटलाई मन के मैल।
ई घटना के समय सुहावन, अड़सठ के अप्रैल॥३३॥

इंग्लंडो के एगो सज्जन, रहै विदेशी भक्त।
‘आज हवा ही मेरा घर है, ‘कहै यहें हर वक्त॥३४॥

जब आश्रम केन देखै, धरती पर के स्वर्ग।
यहाँ पड़े छै गंगाजल के, सूरज के नित अर्घ॥३५॥

आश्रम केरो सबन्धों में, उनको रहै विचार।
बाबा केरो चरण-कमल में, छै पूरा संसार॥३६॥

तीन बरस जीवन के अंतिम, बीतें आश्रम बीच।
घौंर हवा जे हाम्रा छेकई, लाने हाम्रा खींच॥३७॥

‘माइकेल बीसेण्ट’ कहै छै, शायद उंकोन नाम।
भक्ति-भाव से मुक्ति मार्ग के, खोजै आटो धाम॥३८॥

धाम अयोध्या जी के वासी, लाल सखे शुभ नाम।
भजन-भाव के बाद करे नित, अपनों कोनों काम॥३९॥

सदगुरु दर्शन के अभिलाषा, मन में भी उत्साह।
गाड़ी पकड़ी आगू बढ़लाई, भागलपुर के राह॥४०॥

वाटों में डब्बा में घूसलाई, गुंडा के जामात।
सब यात्री के साथे करलक, मनमाना उत्पात॥४१॥

लालसखे जी केन छोड़े छै, देखी चन्दन भाल
बाँकी सबके छीनें लगलाई, रुपया-पैसा-माल॥४२॥

नवविवाहिता केन छेड़े में, बोलें लगलाई संत।
दू ठो गुंडा आबी गेलाई, संतों पास तुरंत॥४३॥

गुंडा बोलै ‘हम समझे थे, तुमको पूरा संत।
सबसे पहले करना होगा, तेरा ही अब अंत’॥४४॥

इतना बोली पकड़ी लै छै, दू ठो दोनों हाथ।
बाहर फेकै ऊ संतों केन, गोस्सा केरो साथ॥४५॥

सनयोगों सें बाबा गिरलै, जै जाँ रहै पुयाल।
कहिया बिगड़ी गेआली ककरों, ईश्वर जकरो ढाल॥४६॥

जब गाड़ों के नजर पड़े छै, मारी दै छै ब्रेक।
घटना सच्चा जानैंलेली, शुरू करलकै चेक॥४७॥

गाड़ी रोकी गाड़ें चाहै, पूछे जखनी हाल।
कहै संत डब्बा में देखो, अवला जे बेहाल॥४८॥

गार्ड पुलिस के साथे होलै, जाही लें तैयार।
गुंडा सब्भे उतरी-उतरी, होलै तुरत फरार॥४९॥

पुलिस पकड़लक दाऊदी दू ठो, मारै भारी मार।
संत ट्रेन में आबी हॉलै, गाड़ों साथ सवार॥५०॥

भागलपुर उतरी के गेलै, मेँहीँ बाबा पास।
बाबा छेलै ध्यान लगैने, बंद करे केन स्वाँस॥५१॥

बाबा खोली आँख कहै छै, जे ऐतै दरवार
ईश्वर दरिया के बीचों सें, नव लगैतै पार॥५२॥

लालसखे जी पैर छूवी केन, बोलै अपनों बात।
गाड़ी में जे हॉलों छेलै, सही-सही उत्पात॥५३॥

घटना क्रम के बाट सुनी केन, बाबा दै मुसकाय।
लालसखे जी बाबा चरणों में गेलै लापताय॥५४॥

राष्ट्र-प्रेम मेँहीँ बाबा में, बड्डी पकड़े ज़ोर।
बहै सभ्यता-संस्कृति लेली, आँखों से भी लोर॥५५॥

युद्ध भूमि के हिंसा जानों, नैंहिंसा कहलाय।
देशौ लेली प्राण गंवाना, धर्म कहै समझाय॥५६॥

चीन युद्ध में बाबा बोलै, ‘अगर कहे सरकार।
बूढ़ा होकर जान ग्माने, खातिर मैं तैयार॥५७॥

जीवन का तो अंत सुनिश्चित, जाँ रहे हो भाय।
भारत की रक्षा में रहना, पूरा जन समुदाय॥५८॥

बाबा के वाणी सें, समझों, बंद रहै छै युद्ध।
हम्मे सब तेन समझै छीयै, बाबा गौतम बुद्ध॥५९॥

तेजपूरों में नाश्ता-पानी, भोजन दिल्ली जाय।
चीनी केरो यहे घोषणा, जानी लें सब भाय॥६०॥

पर नैंकोनो दवाब एले, युद्ध अचानक बंद।
सेना केरोन रहै हौसला तहिया पूर्ण बुलंद॥६१॥

करै सुरक्षा कोशों खातिर, बाबा हरदम दान।
करते रहलै जब तक जीलै, सामाजिक कल्याण॥६२॥