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सर्ग - 8 / महर्षि मेँहीँ / हीरा प्रसाद ‘हरेन्द्र’

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यै बारी भगलपुर आबी,
बाबा रहलै दू सप्ताह।
दर्शन पाबी मेँहीँ बाबा,
के मन में भारी उंत्साह॥ (१)

देवी बाबा साथे-साथे,
गेलै हिनी मुरादाबाद ।
तत्पर रहते सेवा में नित,
लेतें रहलै आशीर्वाद॥ (२)

भागलपुर देवी बाबा,
पूछै मेँहीँ जी सें बात।
‘पहिने तोरों कोण साधना,
में बीतै छेलै दिन-रात’॥ (३)

‘गुरु मंत्रों के जाप हमेशा,
त्राटक साथे गुरु पर ध्यान’।
बाबा पूछै ‘गुरु रूपों के,
होलै कहिनों मन अनुमान’॥ (४)

मेँहीँ बाबा बोलै फेनूँ,
‘साफ-साफ नैंघूँघला रंग।
लागै उनका चरणों लोटी,
समय बिताबो उनका संग’॥(५)

देवी बाबा बोलै कैसें,
आगू जीये केरों मोंन।
स्वावलंबी चाहें मधूकरी
(तुलसी सिस्टम) में सें कोन॥(६)

मेँहीँ बाबा केरों छेलै,
वृति मधूकरी पर ही ज़ोर।
देवी बाबा हँसी-हँसी कें,
सीने राखै अपनों ठोर॥ (७)

बाबा साहब भागलपुर सें,
आगू पहुँचे छै मुंगेर।
छ्परा, बलिया, गाजीपुर में,
कन्हौ कहाँ रूकै छै ढेर॥ (८)

सबके साथे गोरखपुर सें,
आबै तुरंत मुरादाबाद।
मेँहीँ बाबा साथे ऐलै,
मिटलै मन के कुछ अवसाद॥(९)

मुरादाबाद सत्संगों में,
नानक जी वाणी के पाठ।
तुमने क्या समझा पुछला पर,
मेँहीँ बाबा होलै काठ॥ (१०)

देवी बाबा धिक्कारै छै,
फटकारै छै आँख दिखाय।
फेनूँ वैठाँ के लोंगों कें,
बोलैछै बढ़िया समझाय॥११)

पढ़ना-लिखना साथ पिता कें,
छोडी ऐलै संतों संग।
दाँत-डपट सें योग्य बनैबै,
सब्भे होतै देखी दाङ॥ (१२)

देवी बाबा कें नैंमानों,
भूल्हौ सें तों खीरा रंग।
औंकोन तुलना होबो करतै,
जहाँ नारियल केरों संग॥ (१३)

देवी बाबा साथे रहलै,
मेँहीँ बाबा पूरा माह।
सतसंगी सागर में डूबी,
पाबै चाहै हरदम थाह॥(१४)

एक दिनाँ गुरु शिष्य समेते,
एक स्थाने रहै एकत्र।
यही बीच बबुजन बाबू के,
ऐलै बाबा लेगी पत्र॥(१५)

पत्रों में आग्रह बाबा सेन,
मेँहीँ भेजों हमरा पास।
घर में बैठी करते रहतै,
नित्य भजन-साधन-अभ्यास॥(१६)

बाबा बोलै मेँहीँ जी सें,
‘भजन साथ कुछ करना काम’।
काम किये बिन कभी भूलकर,
भोजन का मत लेना नाम॥(१७)

पिता तुम्हारे पत्र भेजकर,
दिखलाये हैं पूरा प्यार।
घबड़ाने की बात नहीं है,
चलता है ऐसे संसार॥(१८)

ऐलै लौटी घर जब मेँहीँ,
छुवै पूज्य पिता के गोड़।
गामों के वातावरण में,
ऐलों लागै पूरा मोड़॥(१९)

वहीं बनैंसत्संग भवन भी,
गामों के पूरा सहयोग।
वैठाँ आबी सत्संगी सब,
करै ध्यान नित आरू योग॥ (२०)

मेँहीँ बाबा एकवार ही,
भोजन के करलक अभ्यास।
पर कमजोरी के तन-मन में,
होलै थोड़ा सा आभास॥ (२१)

डाक्टर साहब के सलाह पर,
बाबा देलकै नियम तोड़।
मुरादाबाद गुरु के दर्शन,
लेली चललै आश्रम छोड़॥ (२२)

गामों के सत्संगी ढेरी,
आगू-पीछू होलै साथ।
उमड़ी पड़लै मेँहीँ बाबा,
बनैंअनाथों केरों नाथ॥ (२३)

कुशल क्षेम पूछी के पूछै,
बाबा प्रेम-दया के धाम।
‘अन्न ग्रहण करने के पहले,
किया पिता जी का कुछ काम’॥(२४)

बाबा बोले ‘पूज्य पिताजी,
नाही दिये कुछ करने काम।
भजन-भाव-सत्संग बिताया,
अपना पूरा आठो याम’॥ (२५)

‘मुफ्त अगर भोजन पावोगे,
होगा तेरा खून खराब।
अन्न पिता जी का भी होगा,
तब भी मन में पूर्ण दुराव॥ (२६)

बिना मेहनत भोजन करना,
यह भी समझो है अपराध।
भटकौगे तुम सही मार्ग से,
पूर्ण न होगा तेरा साध’॥ (२७)

देवी बाबा पूरा देलक,
अति सुंदर पावन उमदेश।
मेँहीँ बाबा सुनलक जैसे,
गुरु वशिष्ठ केरो अवधेश॥ (२८)

मेँहीँ बाबा चलै धरहरा,
बाबा केरो लें आदेश।
पहुँची गेलै आश्रम अपनों,
दिन के कुछ रहतें ही शेष॥ (२९)

जोतरामराय गाँव में ही,
ठानैंछै पहिलों सत्संग।
चन्दा लेली घूमै बाबा,
छिड़लै वहाँ बात के जंग॥ (३०)

पंडित एक वहाँ पर बोलै,
ईश्वर का बस लेना नाम।
धर्म-कर्म को भी अपनाना,
यह तो है ब्रहमण का काम॥ (३१)

पेशा अपना छोड़ कहाँ से,
उल्टा करते धर्म प्रचार।
हिंसा यह भी कहीं छीन लो,
अगर दूसरों का अधिकार॥ (३२)

बाबा बोलै पंडित जी सें,
‘सचमुच ब्रहमण का यह काम।
पर खाली गद्दी को देखा,
बैठ गया प्रभु का ले नाम॥ (३३)

पहले था जो काम आप का,
मैं करता हूँ अब वह काम,। \
उत्तर सुनथे पंडित भागै,
नैंऐलै फेनू ऊ ठाम॥ (३४)

अधिवेशन के बाद धरहरा,
ऐलै बाबा अपनों ग्राम।
बसै धरहरा एक साधु जे,
कहै श्याम सुंदर निज नाम॥ (३५)

चलै पता नैंकहिने हरदम।
बात करै वें भरलों स्वार्थ।
करै घोषणा हम्मे करबै,
मेँहीँ बाबा सें शास्त्रार्थ॥ (३६)

विजय-पराजय लेली राखै,
रुपया-पैसा केरो शर्त।
साधु वेश धारी खल कामी,
नैंसूझै आगू के गर्त्त॥ (३७)

एक दिनां सत्संग भवन में,
मारें लगलै जब ललकार।
बाबा आबी कर जोड़ी के,
मानी लै झट अपनों हार॥ (३८)

लालसा पूर्ण करें धरहरा,
नैंजानौ की सोची भाय।
एलै आरू सत्संगी सें,
बिन मतलब गेलै टकराय॥ (३९)

होलै वहाँ पराजित जखनी,
भागै झटपट मुँहकी खाय।
शास्त्रार्थ शब्द सदा-सदा लें,
गेलै जीवन सें भुतलाय॥ (४०)