सर्प 
देखते ही मनुष्य को
        नहीं डसता
लेकिन मनुष्य
सर्प को देखते ही मारता है
मनुष्य के सब काम 
      समझ से परे के हैं !
सच है
सर्प तो 
जहर से भरा है
लेकिन, सच पूछो तो-
मनुष्य में जहर कौनसा थोड़ा है ?
बे-कसूरों को मार-मार
     अपने प्राणों की पूरी सुरक्षा 
अपनी देही के पूरे जतन 
मनुष्य तुम्हारी
यह सभ्यता
यह संस्कृति
     धन्य-धन्य !
अनुवाद : नीरज दइया