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सर्प और मनुष्य / रामेश्वर दयाल श्रीमाली
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सर्प
देखते ही मनुष्य को
नहीं डसता
लेकिन मनुष्य
सर्प को देखते ही मारता है
मनुष्य के सब काम
समझ से परे के हैं !
सच है
सर्प तो
जहर से भरा है
लेकिन, सच पूछो तो-
मनुष्य में जहर कौनसा थोड़ा है ?
बे-कसूरों को मार-मार
अपने प्राणों की पूरी सुरक्षा
अपनी देही के पूरे जतन
मनुष्य तुम्हारी
यह सभ्यता
यह संस्कृति
धन्य-धन्य !
अनुवाद : नीरज दइया