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सर्प विरोधी गीत / मदन डागा
Kavita Kosh से
दरअसल तुम्हें
न आदमी की पहचान है
न सर्प की !
आहट से जो सर्प
घुस गए हैं बिल में
निश्चित वे नहीं हैं महफ़िल में
पर इसका अर्थ, यह तो नहीं
कि वे मर गए हैं
फ़कत इसलिए कि वे डर गए हैं
वे कार्यालयों की फ़ाइलों
औ' विश्वविद्यालयों की क़िताबों में--
दुबक गए हैं ।
तुम उनके निकलने से बनी
लकीरों पर लाठियाँ बजाते रहो
या फिर गोष्ठियों में
सर्पविरोधी गीत गाते रहो !