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सर्वधर्म प्रार्थना / हरेराम बाजपेयी 'आश'

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हे प्रभु, हे देव भगवन, शिव कहें या राम
तू ही ईसा, तू ही नानक, अल्लाह भी तेरा नाम,
स्वीकार करो मेरा नमन, स्वीकार करो मेरा प्रणाम।

माता-पिता-गुरु भी तुम्हीं हो और सचा मित्र।
शब्द मीठे भाव मिश्रित, महके कि जैसे इत्र
बुद्धि ऐसी देना दाता जिससे बढ़े ज्ञान। स्वीकार करो...

शक्ति मुझको इतनी देना, सत्त मार्ग पर चलते रहें
भाग्य के साए न सोएँ, कर्तव्य पर निर्भर रहें
प्रेम छोटों से करें और बड़ों का मान। स्वीकार करो...

निर्बलों का बल बने और अहिंसा धर्म हो,
सब सराहें दिल से हमको, ऐसे हमारे कर्म हों।
सफलताएँ कदम चूमें, पर न हो अभिमान स्वीकार करो...

हिन्दू-मुस्लिम सिक्ख ईसाई, बोद्ध जैन या पारसी
सूर तुलसी कबीर मिरा, या मोहम्मद जायसी,
सभी ने सिखलाया है हमको सत्य और ईमान। स्वीकार कारों...
गाँधीजी कहते यही थे प्रार्थना में शक्ति है
फर्क शब्दों में भले हो, भाव में ही भक्ति है
राम बोलो या रझीं सब में तेरी शान। स्वीकार करो...