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सर्वशिक्षा का वरदान / नंदेश निर्मल
Kavita Kosh से
गाँव से लेकर शहर तक शोर है,
सर्वशिक्षा का बड़ा ही ज़ोर है।
हो रहा जत्था खड़ा हर ओर है
लग रहा मानों यहाँ अब भोर है।
हर तरफ है जागरण ही जागरण
सब बने शिक्षित इसी का दौर है।
अब प्रभा दिखने लगी हर ओर है
चेत निर्मल यह सपन का होर है
छा गई शिक्षा घटा घनघोर है
नाचता-गाता यहाँ मन मोर है।
कोसना अब छोड़ यह अच्छा नहीं
अब सभी शिक्षित बने यह होड़ है।
गाँव से लेकर शहर तक शोर है
सर्व शिक्षा का बड़ा ही ज़ोर है।