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सर्वसमर्थ, सर्वके प्रेरक, सर्वशक्ति-निधि, सर्वाधार / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(राग शिवरञ्जनी-ताल कहरवा)
सर्वसमर्थ, सर्वके प्रेरक, सर्वशक्ति-निधि, सर्वाधार।
सर्वलोक परमेश्वर, सर्वज्ञाता, सबके सुहृद उदार॥
ऐसे प्रभु करुणा-सागर हैं, रहते सदा तुम्हारे साथ।
योग-क्षेम-वहन करते, सिरपर रख अभय-वरद निज हाथ॥
देखो, अनुभव करो, सदा समझो अपनेको पूर्ण सनाथ।
सहज सुहृद प्रभुके, कृतज्ञ हो, गाते रहो नित्य गुण-गाथ॥
करो सदा तन-मन-वाणीसे प्रभु-अनुकूल सभी व्यवहार।
प्रभु-पूजा-प्रीत्यर्थ समर्पित रहे सभी आचार-विचार।
एकमात्र प्रभु ही पल-पलमें, पद-पदपर हों शुचि आराध्य॥
प्रभु-उपासनामय जीवन हो, प्रभु ही हों सब साधन-साध्य।