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सर पे आसमान हो सुकून का / ब्रजमोहन

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सर पे आसमान हो सुकून का, सकून का
पाँव के तले ज़मीन हो जो प्यार दे सके
हवाएँ हों जो दुख चुरा के मुस्कुरा के उड़ चलें
हर एक पेड़ छाँव दे सके करार दे सके

अगर जो ऐसा हो सके तो इस जहाँ को फूँक दो
लहू से तर-बतर हरेक आसमाँ को फूँक दो

पंछियों के कारवाँ उड़े तो फिर थमे नहीं
दूर तक शिकारियों का ख़ौफ़ हो न जाल हो
सफ़र न हो उदासियों का जंगलों के रास्ते
किसी के स्वप्न टूटने की न कोई मिसाल हो
अगर जो ऐसा हो सके ...

फ़सल से बात करके घर में सुख से सोए हर किसान
चिमनियों की आग में जलें न चाहतों के घर
सभी के होंठ गा उठें हरेक दिल में गीत हो
किसी की आँख में न दुश्मनी का बच सके ज़हर
अगर जो ऐसा हो सके ...

अपने मन में भर सुबह के सूर्य की उजास को
नई इमारतों की नींव में जो सर बिछा सको
ज़िन्दगी को मौत से अगर जो तुम बचा सको
जलाओ ये जहाँ अगर नया जहाँ बना सको

नया जहाँ बना सको तो इस जहाँ को फूँक दो
लहू से तर-बतर हरेक आसमाँ को फूँक दो