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सलामत मय-कदा या रब सलामत पीर-ए-मय-ख़ाना / रियाज़ ख़ैराबादी
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सलामत मय-कदा या रब सलामत पीर-ए-मय-ख़ाना
हरम में हूँ मिरी आँखों में है तस्वीर-ए-मय-ख़ाना
तुझे जाना भी है जन्नत में ऐ वाइज़ जवाँ हो कर
जो आया है तो देखे जा ज़रा तासीर-ए-मय-ख़ाना
रह-ए-दैर-ओ-हरम जो कोई भूला यहीं पहुँचा
न भूला रास्ता कोई कभी रहगीर-ए-मय ख़ाना
कहें हम क्या हमारा मय-कदा वाबस्ता है किस से
मिली है अर्श की ज़ंजीर से ज़ंजीर-ए-मय-ख़ाना
‘रियाज़’ इस मय-कदे में भी शरफ़ है कुछ सियादत को
नहीं हम पीर-ए-मय-ख़ाना मगर हैं मीर-ए-मय-ख़ाना