भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सलामत मय-कदा या रब सलामत पीर-ए-मय-ख़ाना / रियाज़ ख़ैराबादी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सलामत मय-कदा या रब सलामत पीर-ए-मय-ख़ाना
हरम में हूँ मिरी आँखों में है तस्वीर-ए-मय-ख़ाना

तुझे जाना भी है जन्नत में ऐ वाइज़ जवाँ हो कर
जो आया है तो देखे जा ज़रा तासीर-ए-मय-ख़ाना

रह-ए-दैर-ओ-हरम जो कोई भूला यहीं पहुँचा
न भूला रास्ता कोई कभी रहगीर-ए-मय ख़ाना

कहें हम क्या हमारा मय-कदा वाबस्ता है किस से
मिली है अर्श की ज़ंजीर से ज़ंजीर-ए-मय-ख़ाना

‘रियाज़’ इस मय-कदे में भी शरफ़ है कुछ सियादत को
नहीं हम पीर-ए-मय-ख़ाना मगर हैं मीर-ए-मय-ख़ाना