भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सवारियाँ / लालसिंह दिल / सत्यपाल सहगल
Kavita Kosh से
सवारियाँ
जिनका सामान
पीछे छूट गया।
तेज़ दौड़ती गाड़ी के
दरवाज़े पर खड़ीं
उतरने के बारे में सोचतीं
कोई सपनों जैसा सामान।
मूल पंजाबी से अनुवाद : सत्यपाल सहगल