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सवाल ही सवाल/रमा द्विवेदी

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क्या युग का यह कमाल है?
कि हर तरफ सवाल है।
सवाल के ज़वाब में,
सवाल ही सवाल हैं।

सवाल इक सुलझ गया,
सवाल इक उलझ गया,
सवाल इक अनबुझा,
सवाल इक मचल गया।

अन्तस के कुछ सवाल हैं,
कुछ बाहरी सवाल हैं,
संसार भर के हैं सवाल,
सवालों से बेहाल हैं।

मंदिर से भी सवाल हैं
मस्जिद से भी सवाल हैं,
सवाल है मधुशाला से ,
‘वंदे मातरम’ पर सवाल हैं।

रिश्तों में भी सवाल हैं,
मित्रों से भी सवाल हैं,
दिल के जो करीब है,
उससे भी तो सवाल हैं।

गणित लगा-लगा थका,
सवाल हल न हो सका,
सवाल के जंजाल से,
कोई भी न निकल सका।

सवालों का है सिलसिला,
सवालों का है जलजला,
चुप यहां कोई नहीं,
सवाल करता ही चला।