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सवेरा उनके घर फैला हुआ है / बल्ली सिंह चीमा
Kavita Kosh से
सवेरा उनके घर फैला हुआ है ।
अँधेरा मेरे घर ठहरा हुआ है ।
हमें लूटा हमारे रहनुमा ने,
चमन था कभी घर सहरा हुआ है ।
वो क्या जाने अँधेरे के सितम को,
फ़ज़र के साथ जो पैदा हुआ है ।
सुनेगा क्यों वो चीख़ें झोंपड़ी की,
जो कुर्सी के लिए बहरा हुआ है ।
दवा उसको कहूँ कैसे मैं जिससे,
मेरा हर घाव ही गहरा हुआ है ।
बदल कर भी यहाँ कुछ भी न बदला,
समझ बैठे वो सब बदला हुआ है ।