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सशक्त होती लड़कियाँ / अमित कुमार अम्बष्ट 'आमिली'
Kavita Kosh से
अहले सुबह गांव में
हरी घास की
हरियाली सी लगती हैं
साइकिल पर सवार
विद्यालय जाती लड़कियाँ,
घंटियों की मधुर टंकार लिए
गांव की पगडंडियों पर
ऊबड़ - खाबड़ रास्तों से गुजरती,
समंदर सी लहराती लड़कियाँ,
अपने दुपट्टे को कमर में कसे,
साइकिल के पैडलों को
अपने ज़ज्बे से दाबती,
अपनी जमीन तलाशती लड़कियाँ!
पीछे कैरियर पर
पुस्तकों का पोलीथिन वाला बस्ताा
रॉकेट-सी
अपने सपनों उड़ान लिए लड़कियां
बेखौफ, निडर ,अल्हड़
आसमानी सीढ़ियाँ चढ़ती लड़कियाँ,
गति धीमी ही सही, मगर
आँखों को बहुत सुहाती हैं
ये सशक्त होती लड़कियाँ !