सहमे हुए बच्चे / आर्थर रैम्बो / मदन पाल सिंह
बर्फ़ और कुहासे में
काले गन्दे कपड़ों में अभागे बच्चे, बैठे हुए गोलबन्द
तहख़ाने के गरम जँगले पर जमे ।
घुटनों पर ये पॉंच अभागे बच्चे
देख रहे हैं नानबाई को
भूरी और भारी रोटी बनाते हुए,
देख रहे हैं बादामी आटा गूँथती गोरी-गोरी बाँहों को
जो उजाले से भरी भट्टी में उन्हें सेंकती हैं ।
वे सुन रहे हैं, उस उम्दा रोटी के सिंकने की आवाज़
और चिकनाई से भरे कपड़ों में हॅंसमुख नानबाई
गुनगुना रहा है एक पुरानी धुन ।
वे सब इकट्ठे हैं एक-साथ, बिना हिले-डुले
गर्म झझरी को करते हुए महसूस
जो उष्ण है एक स्तन की तरह ।
रात में अर्धरात्रि के भोज के लिए
पककर फूली हुई सुनहरी रोटी को निकाल लेता है नानबाई,
जब धुआँ देती जलती लकड़ी के ऊपर
आती है सौंधी कुरकुराने की आवाज़
और झिंगुरों की झनझनाहट,
यह गरम छेद उनके जीवन में कर देता है गर्माहट का संचार
और उनकी आत्मा हो जाती है मग्न
फटे-पुराने गूदड़ों के नीचे ।
वे महसूस करते हैं अपना जीवन सुखदायक और धन्य
ठण्ड में जमते हुए ये अभागे
अभी तक सब यहीं हैं,
उस जँगले से लगाए हुए
अपनी छोटी लाल सुड़कती नाकें
और गाते हैं उस छेद में,
लेकिन बहुत धीमे जैसे करते हैं प्रार्थना
और पुनः मुड़ते हैं पौ फटने के उजाले की ओर
मुड़ते हैं इतनी तेज़ी से कि
वे फाड़ लेते हैं अपने निक्कर
और फड़फड़ाने लगती हैं उनकी चिथड़ा कमीज़ें
शीत से जमती हवाओं में।
मूल फ़्रांसीसी भाषा से अनुवाद : मदन पाल सिंह