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सहरा उदास है न समन्दर उदास है / अनिरुद्ध सिन्हा
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सहरा उदास है न समन्दर उदास है
आँखों के सामने का ये मंज़र उदास है
रोया तमाम रात किसी के ख़याल में
सुर्ख़ी है उसकी आँखों में बिस्तर उदास में
उभरा है आइने में हमारा ही जब से अक्स
तब से हमारे हाथ का पत्थर उदास में
सारे मकान वाले बिछाए हैं छत पे जाल
बुलबुल भी है उदास कबूतर उदास है
सावन है पास और हवा का दबाव भी
दीवार गिर न जाए मेरा घर उदास है