साँझ भई घर आवहु प्यारे / सूरदास
राग कान्हरौ
साँझ भई घर आवहु प्यारे ।
दौरत कहा चोट लगगगुहै कहुँ, पुनि खेलिहौ सकारे ॥
आपुहिं जाइ बाँह गहि ल्याई, खेह रही लपटाइ ।
धूरि झारि तातौ जल ल्याई, तेल परसि अन्हवाइ ॥
सरस बसन तन पोंछि स्याम कौ, भीतर गई लिवाइ ।
सूर स्याम कछु करौ बियारी, पुनि राखौं पौढ़ाइ ॥
भावार्थ :-- (माता कहती हैं) `प्यारे लाल ! संध्या हो गयी, अब घर चले आओ । दौड़ते क्यों हो, कहीं चोट लग जायगी, सबेरे फिर खेलना ।' (यह कह कर) स्वयं जाकर भुजा पकड़कर माता मोहन को ले आयी । उनके शरीर में धूलि लिपट रही थी, शरीर की धूलि झाड़कर तेल लगाया और गरम जल लाकर स्नान कराया । कोमल वस्त्र से श्याम का शरीर पोंछकर तब उन्हें घर के भीतर ले गयी । सूरदास जी कहते हैं--(मैया ने कहा)-)`लाल ! कुछ ब्यालू (सायंकालीन भोजन) कर लो, फिर सुला दूँ ।