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साँपिन / नंदकिशोर आचार्य
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साँपिन अंडे देती है
और कुँडली में घेर लेती उन्हें
और खाती रहती है
अपने ही बच्चों को !
- कहते है प्रकृति से विवश है वह।
ओल कालव्याली !
हम भी तो बँधे हैं जन्म ही से
तुम्हारी कुँडली में
और अचानक ग्रस लिया जाता है हम को
- तुम भी विवश हो क्या ?
तो लो माँ
ग्रस लो मुझे जब चाहो
तनिक भी इच्छुक नहीं हूँ मैं
तुम्हारी कुँडली से निकल पाने के लिए
- यदि सम्भव हो भी तो
क्योंकि मैं अपनी ही सन्तति को
खाना नही चाहता।
(1969)