भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साँवरे की बज़्म में जब आ गये / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साँवरे की बज़्म में जब आ गये
देख उस को बेतरह शर्मा गये

चल पड़े जब ज़िन्दगी की राह पर
पल खुशी के देख कर कतरा गये

दर्द के बिन है अधूरी शायरी
हैं पुराने लोग ये समझा गये

है मिला तक़दीर से तू सांवरा
मोह दुनियाँ के हमें बहका गये

जिंदगी में हैं बने रिश्ते मगर
थे अकेले आये औ तन्हा गये

कत्ल जब मेरी तमन्ना का हुआ
खून के छींटे यहाँ तक आ गये

हमसफ़र अब तो बनीं तन्हाइयाँ
जिंदगी के शोर से घबरा गये