भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साँसों में दर्द भरा है/ विनय प्रजापति 'नज़र'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रचनाकाल: २००५/२०११

साँसों में दर्द भरा है
आज हर मंज़र हरा है

वह पहली नज़र से मेरे
शीश:-ए-दिल में ठहरा है

हर-सू, हर शै में वह है
और उसी का चेहरा है

मेरा दर्द सिमटता नहीं
हाले-दिल बहुत बुरा है

अंधेरों की आदत नहीं
सो जुगनुओं का पहरा है

'नज़र' वह पसंद है मुझे
उसका दिल भी गहरा है