सांप  इतने आस्तीं में पल गए 
हम बशर से जैसे हो संदल गए 
 
प्यास ऐसी दी समंदर ने हमें 
लब हमारे खुश्क होकर जल गए 
 
इश्क नेमत है, क़ज़ा है या भरम ? 
फैसले कितने इसी पर टल गए  
 
बेअसर होती गयी हर बद्दुआ
हम दुआ देने कि बाज़ी चल गए
हो गए बर्बाद हम तो क्या हुआ
नाअहल भाई भतीजे पल गए