सांस-सांस का भार लिए / राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल
साँस-साँस का भार लिए
बीते दिवस, उमर और साल।
कितना जिया मरणोन्मुख जीवन,
जग का कितना रहा सवाल।।
भरी दोपहरी खड़ी चढ़ाई
पैरों पर आई परछाई
श्लथ मन है बोझिल काया
अपनी ही ध्वनि लगती है झाँई
चैरेवति का मंत्र शिथिल है
जब आ पहुंचा है ढाल
साँस-साँस का भार लिए
बीते दिवस, उमर और साल।
कितना जिया मरणोन्मुख जीवन,
जग का कितना रहा सवाल।।
पलकों पर स्वप्न नहीं बुना मैं
नग-तल पर चलना मात्र चुना मैं
आरोही को रस्ता देकर
हटता रहा मार्ग से हरदम
शिखर पर नहीं पहुँच
बैठ सिर नहीं धुना मैं
सब रंगों की मेरी पाती मस्त एकाकी चाल
साँस-साँस का भार लिए
बीते दिवस, उमर और साल।
कितना जिया मरणोन्मुख जीवन,
जग कितना रहा सवाल।।
देह घाट पर है स्पर्धा का मेला
श्रेय प्रेय के वन में प्राण अकेला
पंकिल पथ है शून्य गगन है
तीली कारा रोके कैस,
पंछी है अलबेला
लोहित संध्या सिमटी राहें
दस्तक देता काल
साँस-साँस का भार लिए
बीते दिवस, उमर और साल।
कितना जिया मरणोन्मुख जीवन,
जग का कितना रहा सवाल।।
अंधियारे की जलती बाती
जग की पीड़ा अपनी थाती
संवेदन बन न सका स्नेहन
अंतर्ज्वाला से दहती छाती
आज महूरत चला चली का कैसे सकोगे टाल
साँस-साँस का भार लिए
बीते दिवस, उमर और साल।
कितना जिया मरणोन्मुख जीवन,
जग कितना रहा सवाल।।
जीवन जीना शाह सही
मरना है अवसान नहीं
दिया बहुत कम, लेकर ज्यादा
पथ का सम्बल, अहसान यही
राम-राम लो करो विदाई,
भूल चूक का न हो ख्याल
साँस-साँस का भार लिए
बीते दिवस, उमर और साल।
कितना जिया मरणोन्मुख जीवन,
जग का कितना रहा सवाल।।