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सांस-सांस गाती है... / नीरज दइया

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‘झीनी-झीनी चदरिया,’
ओढ़ रखी है मैंने भी
तुम्हारे नाम की।

मेरी सांस-सांस
गाती है दिन-रात।

भीतर-बाहर आती-जाती
गुनगुनाती है हवा
बस एक ही आलाप....।