भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

साक़ी है गरचे बे-शुमार शराब / मह लक़ा 'चंदा'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साक़ी है गरचे बे-शुमार शराब
नहीं ख़ुश-तर सिवाए यार शराब

क़त्ल पर किस के आज होती है
तौसन-ए-हुस्न पर सवार शराब

रख करम पर तेरे नज़र मुजरिम
नोश करते हैं बे-शुमार शराब

उन को आँखें दिखा दे टुक साक़ी
चाहते हैं जो बार बार शराब

या अली हश्र में दो ‘चंदा’ को
आब-ए-कौसर की ख़ुश-गवार शराब