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साक्ष्य / सिद्धेश्वर सिंह
Kavita Kosh से
बर्फ़ अब भी गिरती है
और खालीपन भर-सा जाता है।
इस निर्जन शहर में
लोग ( शायद ) अब भी रहते हैं
क्योंकि --
पगडण्डियों पर
पाँवों के इक्का-दुक्का निशान हैं
कहीं-कहीं ख़ून के धब्बे
और एक अशब्द चीख़ भी ।