सागपात के चोर / मनोज कुमार झा
इन्हें पता है कि किसके आँगन में खिले हैं गेंदा
जी खोलकर
और किसके बारी के नींबू होते हैं महकीले और रसदार
मटर के पौधों की गोद हरी-भरी है छमियों से
किसके खेत में
और किस खेत की मूली बच्चा चबाने में भी
लगती है मजेदार
गाँव में कहाँ है वह पौधा हरी मिर्च का
जिसकी तासीर है सबसे तीखी
और किस पेड़ पर लगे टिकोर मन को कर देते हैं
महमह।
ये दबे पाँव तोड़ लाते हैं गेंदा
और चढ़ाते हैं देव-प्रतिमाओं पर क्षमा-याचना सहित
या दे देते हैं बच्चों को खेलने के लिए और अंदाजते हैं
उनके चेहरों की खुशी
सफाई से तोड़ लाते हैं एकाध नींबू
मिलता है घर में सभी को एक-एक फाँक
ओस सूखने से पहले पहुँच जाते हैं खेत में
नजरों से टटोलते चारसू तोड़ते हैं छीमियाँ
दो-चार चखते हैं
शेष बाँधकर गमछे में ले आते हैं घर वालों के लिए।
ये न हों तो घर-बाहर के कितने
चख न पाएँ मीठे टिकोले
और कितनों की थाली वंचित ही रह जाए
हरी मिर्च की महक से
गाँव की वर्णमाला के समर्थ जानकार ये
बाँटते हैं बिन-माँगी सलाह
फूल-पत्तियाँ सँवारने के लिए
अक्सरहाँ ये उन्हीं में से
जिनकी चादर पाँव से छोटी
और अमूमन ये होते हैं खिलाफ करने के कुछ ऐसा-वैसा
इन्हें समतूल करने के लिए।
चार साँसों की इनकी चोरियाँ
आज और अभी के लिए
कल के लिए जहाँ से शुरू होता है प्रचय
उससे पहले ठहर जाती हैं ये चोरियाँ।