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सागर मुद्रा - 5 / अज्ञेय
Kavita Kosh से
कुहरा उमड़ आया
हम उस में खो गये
सागर अनदेखा
गरजता रहा।
फिर हम उमड़े
सागर अनसुना
बरजता रहा,
कुहरा हम में खो गया।
सब कुछ हम में खो गया,
हम भी
हम में खो गये।
सागर कुहरा हम
कुहरा सागर
शं...
मांटैरे (कैलिफ़ोर्निया), मई, 1969