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सागर हो गया मन / रमेश रंजक

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धार ने काटी नरम चट्टान
         खादर हो गया मन !

घा को देकर
सजल सुकुमार चिकनाई
डिम्ब - से कच्चे घरौन्दे
               फोड़ लहराई !

कन्दराओं से हुई पहचान
            नागर हो गया मन !

थकन जलनिधि में नहाकर
                    हो गई निश्चल
अब न खाती कान
           यातायात की हलचल

भूलकर छोटा - बड़ा अपमान
               सागर हो गया मन ।