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साच (2) / कन्हैया लाल सेठिया
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कोनी सूझै
आंगळ स्यूं
आघो
पण बांधै
मिनख
पीढयां तांई रा
बंधाण
ईण स्यूं तो
बै पंखेरू स्याणा
जका चुग्यां पछै दाणा
कोनी करै
आज’र काल में
बगत रा टुकड़ा
रवै
बां री
ऊजळी दीठ में
सासती
खिण री साच !