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साज़ यह छेड़ रहा कौन है, हमारे सिवा! / गुलाब खंडेलवाल
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साज़ यह छेड़ रहा कौन है, हमारे सिवा!
तेरी महफ़िल में बता कौन है, हमारे सिवा!
रोज़ चलता है कोई यों तो साथ-साथ मगर
भेद अब तक न खुला, कौन है हमारे सिवा!
पास रहकर भी नज़र तेरी अजनबी क्यों है
दिल की धड़कन में भला कौन है हमारे सिवा!
यों तो हैं ख़ाक के पुतले ही हम, मगर, ऐ दोस्त!
आग से खेल सका कौन है हमारे सिवा!
दो घड़ी भी न तेरा रंग ठहरता है, गुलाब!
और उस पर ये नशा -- 'कौन है हमारे सिवा!'