सातो से बेटबा हे अम्माँ, सातो बनिजरबा / अंगिका लोकगीत
सातों लड़के विदेश में हैं। सातो पुत्रवधुएँ अपने-अपने बच्चों के साथ घर में हैं। लेकिन, एक बेटी के बिना घर ऐसा सूना लग रहा है, जैसे बछड़े के बिना गाय का बथान सूना रहता है। बेटी अपनी माँ से कहती है- ‘माँ, जिसकी डाला भर मिठाई तुम खा चुकी हो और जिसकी कुसुम रँग की साड़ी पहन चुकी हो, उसी ने तुम्हारे घ्ज्ञर को सूना किया है और वही तुम्हारी बेटी को ले जा रहा है। तुम्हें तो पहले ही सोचना चाहिए था।’ इस गीत की अंतिम दोनों पंक्तियाँ कितनी मार्मिक हैं- ‘बेटी, तुम्हारे विछोह में जिस प्रकार दुहने के समय गायें हुँकरती हैं, उसी प्रकार रसोई के समय तुम्हें याद करके तुम्हारी माँ हुँकरेगी।’
सातों से बेटबा हे अम्माँ, सातो बनिजरबा<ref>व्यापारी, व्यापार के लिए विदेश जाने वाला</ref>।
सातो पुतहुआ हे अम्माँ, सातो लड़कोरिया<ref>वह स्त्री, जिसने नया बच्चा जना हो तथा जो अभी उसे दूध पिलाती हो</ref>॥1॥
सातो घरअ सूतल हे अम्माँ, सातो रे पुतहुआ।
मुनहर<ref>भंडार घर; घर का भीतरी भाग</ref> घरअ सूतल हे अम्माँ, सीता ऐसन बेटिया॥2॥
केकर बिनु सून हे भेल, अम्माँ के मुनहरबा।
केकरा बिनु सून हे भेल, गैया के बथनमा<ref>वह स्थान, जहाँ मवेशी बाँधे जाते हैं</ref>॥3॥
सीता बिनु सून हे भेल, अम्माँ के मुनहरबा।
लेरुआ<ref>बछड़ा</ref> बिनु सून हे भेल गैया के बथनमा॥4॥
जेकरो जे खैलहो हे अम्माँ, डाला भरि मिठैया।
सेहो सून कैलक हे अम्माँ, तोहरो हबेलिया॥5॥
जेकरो पिन्हलहो<ref>पहना; पहनाया</ref> हे अम्माँ, कुसुम रँगल हे सड़िया।
सेहो नेने<ref>लिये हुए</ref> जायछऽ हे अम्माँ, लछमिनी हे बेटिया॥6॥
गैया जे हुँकरत हे सीता, दुहैया केरा हे बेरिया।
तोरो भैया हुँकरत हे सीता, रसोइया केरा हे बेरिया॥7॥